पंजाब की आध्यात्मिक धारा: भक्ति आंदोलन, सूफ़ी विचारधारा और दस गुरु परंपरा का तुलनात्मक अध्ययन
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Abstract
पंजाब भारतीय उपमहाद्वीप का वह सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र है जहाँ विभिन्न धार्मिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक धाराएँ परस्पर संवाद, समन्वय और आदान-प्रदान के माध्यम से समृद्ध हुईं। “ऋग्वेद से लेकर आदि ग्रंथ तक” पंजाब की पवित्र धरती पर ही रचे गए। ऋग्वेद काल में पंजाब को सप्त सिंधु कहा जाता था जो सात नदियों की भूमि थी इस क्षेत्र में वेदों की रचना हुई और बाद में महाभारत,रामायण जैसे महाकाव्य में इसे पंचनद कहा गया जिसका अर्थ भी पांच नदियों की भूमि है। पंजाब की धरती ऊपर विशेष रूप से भक्ति आंदोलन, सूफ़ी विचारधारा और सिख दस गुरु परंपरा ने पंजाब में आध्यात्मिक चेतना, धार्मिक समरसता, सामाजिक समानता और मानवता-केन्द्रित जीवन मूल्यों को नए आयाम प्रदान किए। ये तीनों परंपराएँ ईश्वर, भक्ति, प्रेम, सत्य और नैतिक जीवन दर्शन पर आधारित हैं, परंतु इनके ऐतिहासिक संदर्भ, सामाजिक उद्देश्य, दार्शनिक आधार और प्रायोगिक अनुशासन विशिष्ट भी हैं। प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य इन तीनों आध्यात्मिक धाराओं के उद्भव, विकास, सिद्धांत, साहित्य, धार्मिक अनुशासन, दुनिया-दृष्टि (worldview) तथा सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव का तुलनात्मक समीक्षा-विश्लेषण करना है। विशेष रूप से शोध में यह जांचा गया है कि कैसे इन धाराओं ने मध्यकालीन पंजाब के धार्मिक-सामाजिक ढांचे को रुपांतरित किया और समानता, सत्य, सेवा, सहअस्तित्व, सामूहिक आध्यात्मिकता तथा मानव-कल्याण की दिशा में योगदान दिया। अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भक्ति, सूफ़ीवाद और दस गुरु परंपरा एक-दूसरे से प्रभावित होने के साथ-साथ स्थानीय लोक संस्कृति एवं भाषाई परंपराओं पर आधारित रही हैं। इनका उद्देश्य धार्मिक कट्टरता, सामाजिक भेदभाव, कुरीतियों और अनैतिक व्यवहार के विरुद्ध आध्यात्मिक क्रांति का निर्माण था। वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी ये परंपराएँ शांति, वैश्विक भाईचारा, सांस्कृतिक संवाद और मानव मूल्य पुनर्स्थापन हेतु अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होती हैं।